मंगलवार, 27 जून 2023

एक व्यंग्य 108/05 : चिड़िया और दाना

 


चिड़िया और दाना 


माँ बचपन में यह किस्सा  सुना सुना कर मुझे सुलाती थी , आज वही किस्सा आप लोगों को 

सुना सुना कर जगा रहा हूँ। किस्सा कोताह यूँ कि----]


---इन्द्रप्रस्थ प्रदेश में एक चिड़िया रहती थी । उसे कहीं से चने का एक दाना मिला। उस दाने से वह चने का दाल बनाना

चाहती थी। उससे उसे चक्की [ चाकी ] में डाल कर पीसा मगर न चना ही बाहर आया न दाल ही बाहर आई ।

उसे लगा कि वह दाना चक्की के  ’खूटें"  में फँस गया है। अत: उसे निकलवाने के लिए बढ़ई के पास गई ।

उसने बढ़ई से कहा-


" बढ़ई ! बढ़ई ! तू खूँटा चीरा. खूँटवे में दाल बा

का खाइब ? का पीयब? का ले परदेश जाइब ?


[ अर्थात हे बढ़ई ! तू चल कर मेरा खूँटा चीर दे। उस खूंटे में मेरी दाल फँसी है --नहीं तो में क्या "खाऊँगी" क्या "पीउँगी"

और क्या ले कर परदेश जाउँगी ?

बढ़ई ने टका सा जवाब दिया--तू अभी जा। मैं अभी 2024 के एजेन्डे में बिजी हूँ--वह  मेरा एजेन्डा नहीं है -- तेरा एजेन्डा है

चिड़िया दुखी मन से बाहर आ गई. और  उस बढ़ई की शिकायत करने राजा के पास पहुँच गई।

उसने राजा से कहा-


राजा राजा तू बढ़ई डाँटा ,

बढ़ई  नू खूँटा चीरे. खूँटवे में दाल बा

का खाइब ? का पीयब? का ले परदेश जाइब ?

[अर्थात------]

राजा ने कहा-- तू अभी जा।  हम  अभी  किसी और एजेन्डे में बिजी हैं। वह मेरा एजेन्डा नहीं--  तेरा एजेन्डा है। जब तेरा एजेन्डा

’राज दरबार ’ ’राजसभा’ में आएगा तब देखेंगे----


चिड़िया दुखी मन से सड़क पर आ गई और चिल्लाने लगी--

" सब मिले हुए  हैं जी , सब मिले हुए है । अन्दर से सब मिले हुए हैं ।सब मेरी दाल  चुराना चाहते है-- मेरी दाल निकलेगी नहीं तो बनेगी कैसे? दाल गलेगी कैसे?

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किस्सा खतम -पैसा हजम।

सन्दर्भ ? जो समझ लें


-आनन्द.पाठक-


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