एक व्यंग्य व्यथा : वैलेन्टाइन डे -3
इस 3- से आप ’पानीपत का "तीसरा" युद्ध न समझ लें । हालाँकि नव संस्कृति के नए दौर में ’वैलेन्टाइन डे" मनाना किसी पानीपत के युद्ध से कम भी नहीं ,
जहाँ एक तरफ़ नए नए प्रेमी जोड़े लड़के-लड़कियाँ -दूसरी तरफ़ संस्कृति के ठेकेदार. प्रशासन, पुलिस और बीच में पानीपत का मैदान ।
2-वैलेन्टाइन डे मना चुका हूँ -मगर शहीद न हो सका ]
14-फ़रवरी ।
आज वैलेन्टाइन डे है ।प्रेम का प्रतीक -प्रेम दिवस। दो दिन बाद सरस्वती पूजा है । ज्ञान का प्रतीक, ज्ञान दिवस ।
वैलेन्टाइन डे हमेशा 14-फ़रवरी को ही पड़ता है । लगता है यह दिन उतना ही अटल है, सत्य है, शाश्वत है, जितना "प्रेम’।
परन्तु ज्ञान दिवस [सरस्वती पूजा] ’14-फ़रवरी से कभी पहले आ जाता है,कभी बाद में । इस साल प्रेम पहले आ गया.ज्ञान बाद में आएगा।
ज्ञान और प्रेम में कोई न कोई संबंध अवश्य है । ज्ञान होता है तो प्रेम उपजता है प्रेम हुआ तो ज्ञान । गोपियों को जब ज्ञान उपजा,
तो उद्धव जी फ़ेल हो गए} मगर जब ’प्रेम’ असफल’ होता है तो ज्ञान -चक्षु खुलता है ।मेरा तो कई बार खुल चुका है। मत पूछना कैसे ?
हम" वैलेन्टाईन डे" मनाते है इसलिए कि अंग्रेज मनाते हैं ।हम उनसे कम है क्या ? हमारे यहाँ उस स्तर का कोई "वैलेन्टाइन" पैदा ही नहीं हुआ। लैला- मज़नूँ ,सीरी-फ़रहाद,सोहनी-महीवाल
यह सब तो किस्से है, पढ़ने के लिए सोनपुर के मएला में ददरी के मेला में ,नाटक खेलने के लिए , मेला में नौटंकी करने के लिए ।इसीलिए बहुत से लड़कियाँ आज भी इस स्तर के प्रेम को ’नौटंकी’ ही मानती है ।
इन देसी किस्सों में वह उत्सर्ग कहाँ जो वैलेन्टाइन वाले किस्से में है-निस्वार्थ और निश्छल-माडर्न,एडवान्स ,हाइ क्लास का प्रेम। ,
वह तो भला हो पश्चिमी देश वालों का .अंग्रेजों का, जो बता दिया कि वैलेन्टाइन का प्रेम सबसे बढ़ कर-शुद्ध- सात्विक ।तुम लोग भी मनाया करो, सो मनाते है प्रेम भाव से।
इस दिन, नई फ़स्लों पर ,नई पौध पर बहार आ जाती है। या कहिए छा जाती है ।झूमने लगते है ।आपस में गले मिलने लगते है लड़के-लड़कियाँ।
पहले मैं भी झूमता था। बाग़ों में ,तितलियाँ पकड़ता था ।एक महीना पहले से ही जुगाड़ में लग जाता था । आने वाले परीक्षा की चिन्ता नहीं करता था। वैलेन्टाईन डे की चिन्ता ज़रूर करता था। अगर इसमे पास हो गए तो
समझो लाइफ़ बन गई ,अगर वह ’वाइफ़’ न बनी तो । नकल कर करा के इक्ज़ाम पास कर के भी क्या करेंगे--ज़्यादा से ज़्यादा क्लर्की करेंगे। फिर वही जीवन घसीटना।
बाग में बैठा कर "उसको" समझा रहा था --- तुम कहॊ तो आसमान से चाँद-तारे तोड़ कर ला सकता हूँ --- तुम कहॊ तो तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूँ ,-तुम कहो हवा का रुख मोड़ सकता हूँ
तुम कहो तो----तुम कहो तो----हम दोनो का -- एक छोटा सा बँगला बनेगा, न्यारा,कोठी बँगला गाड़ी होगा --,कुत्ता- होगा --
"कुत्ता" ? -बीच ही में बोल उठी वह।--नहीं जानूऽऽऽऽ ! तुम्हारे रहते कुत्ते की क्या ज़रूरत ?
"हें हें हें --तू भी अच्छा मज़ाक कर लेती है" --मैने अपनी बत्तीसी निपोरी।
"जानती हो ! हम लोग स्विटजरलैंड चलेंगे शादी के बाद हनीमून पर " -मैने उसे समझाया-- स्विटजरलैंड देखा है ? मैने सीना चौड़ा कर के पूछा ।
"हाँ जानती हूँ।हर साल कोई न कोई तेरे जैसा निठल्ला ’स्विटजर लैंड ले जाता है मुझे ।"
अभी सपने बुन ही रहा था कि किसी ने पीठ पर अचानक एक डंडा जमा दिया --बिलबिला कर मुड़ कर देखा पीछे मूछें ताने पुलिसवाला खड़ा है।
मैं हड़बड़ा कर बोल उठा --"सर कजिन है, मेरी कज़िन सिस्टर "
स्साले !मुझको चराता है । मैं भी अपनी जवानी में ऐसे ही कज़िन सिस्टर घुमाया करता था ।चल थाने !
एक डंडे से ’रिश्ते’ कैसे बदल जाते हैं ।
ख़ैर ,ले देकर मामला रफ़ा दफ़ा हो गया। मगर वो भाग गई ।
अब मैं उसे ढूँढने निकला । किधर गई होगी ? किसके साथ भागी होगी? कहीं ’स्विटजरलैंड’ तो नहीं चली गई?
मैं दिन भर उसे ढूँढता रहा । मगर वह न मिली ।
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मिश्रा जी ने आते ही आते पूछा --"अब पीठ का दर्द कैसा है ?"
पीठ? किसकी पीठ ? कैसी पीठ ?-कैसा दर्द ? -मैने आश्चर्य भाव से पूछा।
"बड़े मियाँ दीवाने ऐसे न बनो !-मिश्रा ने जिगर मुरादाबादी का एक तरमीम शुदा शे’र पढ़ा
"जिगर" तू ने छुपाया लाख अपना दर्द-ओ-ग़म लेकिन
बयाँ कर दी तेरी सूरत ने सब कैफ़ियतें दिल की
"भाग गई न ? साल भर का दिन बर्बाद हो गया न । मियाँ ! बिना ’स्टेपनी’ के गाड़ी चलाओगे तो ऐसा ही होगा। मेरा देखो -मैं दो-दो ’स्टेपनी’ साथ लेकर चलता हूँ । एक भागी ,दूसरी हाजिर।
प्रभु ! आप के चरण किधर है ?-मैने कहा।
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अब तो एक ज़माना हो गया वैलेन्टाइन डे मनाए हुए।
जब से श्रीमती जी को वैलेन्टाईन डे के पीछे का "खेल" और ’रहस्य’ मालूम हो गया तब से आज के वह मुझे कैद-ए-बा मशक़्क़त की सज़ा दे देती हैं।
आज 14-फ़रवरी है । आज कहीं आने -जाने को नी । नो बाग़-बगीचा ,नो गार्डेन ।सर में जास्ती तेल-फ़ुलेल लगाने को नी ।आज नो रोमान्टिक शे’र-ओ-शायरी । घर बैठो --गीता पढ़ो --रामायण पढ़ो ।’राम-धुन ’ गाओ --
आँखें नीची ,आवाज़ ऊँची --
मित्रो ! आज 14-फ़रवरी है और मैं रामायण की चौपाइयाँ पढ़ रहा हूँ ।जोर जोर से पढ़ रहा हूँ ।
बरु भल बास नरक कर ताता।
दुष्ट संग जनि देइ बिधाता॥
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नाम "लंकिनी’ एक निसचरी । सो कह चलसि मोहिं निंदरी ॥
स्वामी आनन्दानन्द जी महराज कहते भए- घर में --
’त्रिजटा नाम राक्षसी एका ।--------
प्रेम से बोलो ’त्रिजटा’ मइया की जै ! वैलेन्टाइन महराज की जै ।
-आनन्द.पाठक-
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