एक हास्य-व्यथा : दीदी ! नज़र रखना
"ट्रिन! ट्रिन !ट्रिन !-फोन की घंटी बजी
और श्रीमती ने आदतन फ़ोन उठाया।
कहते हैं श्रीमती जी फ़ोन सुनती नहीं, ’सूँघती’ है और समझ लेती हैं कि किसका
होगा।
"हाँ
बिल्लो बोल !"
"क्या दीदीऽऽ! तुम भी न! अरे ;बिल्लो नहीं --बिट्टो बोल रही हूँ।बिट्टो।
;अरे हाँ रे । तेरे "टुल्ले" जीजा को
"लुल्ले " बोलते बोलते ’ट’ को ’ल’ बोल जाती हूँ न।हाँ बोल ।
" दीदी, मेरी
बातें ध्यान से सुनना। आजकल जीजा के चाल चलन ठीक नहीं लग रहा है। तुम तो ’फ़ेस बुक’ पर हो
नहीं। मगर मैं उनका हर पोस्ट पढ़ती हूँ । जाने
किसे कैसे कैसे गीत ग़ज़ल पोस्ट कर रहे हैं
आजकल।मुझे तो दाल में
कुछ काला लग रहा है । हाव भाव ठीक नहीं लग रहा हैउअनका। पिछले महीने
एक रोमान्टिक गीत पोस्ट किया था ।
लिखा था-
खोल कर यूँ न ज़ुल्फ़ें चलो बाग़ में
प्यार से है भरा दिल,छलक
जाएगा
ये लचकती महकती हुई
डालियाँ
झुक के करती हैं
तुमको नमन, राह में
हाथ बाँधे हुए सब
खड़े फ़ूल हैं
बस तुम्हारे ही
दीदार की
चाह में
यूँ न लिपटा करों शाख़
से पेड़ से
मूक हैं भी तो क्या ? दिल
धड़क जायेगा
पता नहीं किसको घुमा रहे हैं गार्डेन में,आजकल
?
’अरे ! ऊ का घुमायेंगे किसी को, कंजड़ आदमी । मुझे तो कभी घुमाया नहीं "--श्रीमती जी ने प्रतिवाद किया
और मैंने चैन की साँस ली ।
बिट्टो ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा-"कल
एक गीत पोस्ट किया है जीजा ने" । लिखा है
कैसे कह दूँ कि अब तुम बदल सी गई
वरना क्या मैं
समझता नहीं बात क्या !
एक पल का मिलन ,उम्र भर का सपन
रंग भरने का करने
लगा था जतन
कोई धूनी रमा , छोड़ कर चल गया
लकड़ियाँ कुछ हैं
गीली बची कुछ अगन
कोई चाहत बची ही नहीं दिल में अब
अब बिछड़ना भी क्या ,फिर मुलाक़ात क्या !
वरना क्या मैं समझता----
लगता है जिसको घुमा रहे थे ,वो छॊड़ कर भाग गई । कभी कभी फ़ेसबुक भी चेक कर लिया करो इनका।
मुझे तो कुछ लफ़ड़ा लग रहा है । ज़रा कड़ी नज़र रखना
जीजा पर ।
" हाँ बिट्टो ! मुझे भी कुछ कुछ ऐसा लग
रहा है ।पिछले हफ़्ते बाथरूम में एक फ़िल्मी गाना गा रहे थे।
किसी राह में ,किसी मोड़ पर
--कहीं चल न देना
तू छोड़ कर । मेरे हम सफ़र ! मेरे हम सफ़र
किसी हाल में ,किसी बात पर
कहीं चल न देना तुम छोड़ कर---मेरे हम सफ़र ! मेरे हम सफ़र !
पता नही किस को छोड़ने की बात कर रहे थे।
मैने टोका भी आजकल बड़े गाने बज़ाने हो रहे हैं
जनाब के तो ।
बोले कितना सुन्दर गाना है।।मैने पूछा कौन ?
, गाना ? कि गानेवाली ?
तो कहने लगे कि तुम्हारे दिमाग़ में तो कचड़ा भरा है ।मोदी जी को एक सफ़ाई अभियान इधर
भी शुरु
कर देना चाहिए ।
अभी कल ही एक गाना सुना उनका ।आँख बन्द कर बड़े धुन में गा रहे थे।
-ऎ मेरे दिल-ए-नादाँ--तू ग़म से न घबराना
इक दिन तो समझ लेगी --दुनिया तेरा अफ़सान
मुझे भी कुछ ठीक नहीं लग रहा है,आजकल । पता नहीं कौन सा अफ़साना दुनिया को समझा रहे थे।
c
बिट्टो ने अपनी लगाई बुझाई जारी रखते हुए
कहा--" !कल ही जीजा का एक पोस्ट देखा था,लिखे
थे।
जब से छोड़ गई तुम मुझको
सूना सूना दिल का
कोना ।
साथ भला तुम कब तक चलती
आज नहीं तो कल था होना ।
दीदी !’इनके’ दोस्त कह रहे थे कि सरकारी सेवा
से रिटायर हुआ आदमी खुल्ला सांड हो जाता है ।गले से ’Conduct
Rules ’ का पगहा
Rules 14,16 का फ़न्दा छूट जाता है|
सारे बुड्ढे कहते हैं कि मस्ती की जिन्दगी तो 60 के बाद शुरु होती है।हमे तो डर लग
रहा है कि जीजा कहीं नई ज़िन्दगी न शुरु कर दें
।
"अरे ! तू चिन्ता न कर बिट्टो ! ये लिखना
पढ़ना गाना बजाना जितना कर लें। मगर जा
कहीं नही सकते ।कुछ तो ’करोना’ ने क़ैद कर
दिया,
कुछ मैने ’क़ैद-ए-बा मशक़्कत ’ कर दी है॥ मटर
छिलवाती हूँ ,प्याज कटवाती हूँ ।कभी कभी तो ’झाड़ू पोछा’
भी करवा लेती हूँ इन से।
"पर कटा पंक्षी" बना दिया है इनको ।
" पर कटा पक्षी " फ़ुद्क तो सकता है उड़ नहीं सकता ।
अरे! तो कहीं फ़ुदकते फ़ुदकते ही न निकल जाए
_-- कह कर बिट्टो ने फ़ोन रख दिया ।छ
-आनन्द.पाठक-
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें