चुनाव
और तालाब का पानी
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
"
अच्छाsss जी ! दुष्यन्त कुमार’ जी
पढ़े जा रहे हैं ? पढ़ो,
पढ़ो "--मिश्रा जी ने आते ही आते उचारा।
-"
यार मिसरा ! दुष्यन्त भाई ने क्या बात कही है ! कितने साल पहले कह दिया था "-
-"किस
किस तालाब का पानी बदलोगे ? कितना
बदलोगे ? यहाँ तो हर तालाब का पानी गँदला हो गया है। फूल
कुम्हला रहे हैं"
-"बनारस
वाले तालाब का । सोच रहा हूँ मैं भी इस चुनाव मे
बनारस से खड़ा हो जाऊं" -मैने तालाब के पानी बदलने का सही अर्थ समझाया
"हा
हा हा हा"- ! मिश्रा जी ने रावण की तरह वो अठ्ठहास किया कि मैं डर गया । अरे
इस मिश्रा को अचानक क्या हो गया ? इतना जोर जोर से क्यों हँस रहा है? अभी तक तो अच्छा
भला आदमी था।
-"
बहुत खूब ,बहुत
खूब ’अन्धे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी-मिश्रा ने अपनी हँसी जारी रखते हुए
कहा-’ वहाँ तो पहले से ही ’कमल’ खिल रहा है
। वहाँ तालाब कहाँ है ? वहाँ तो गंगा मइया हैं ।
तुम्हें गंगा मइया ने बुलाया है क्या? तुम तो बस राजा तालाब ,सोनिया तालाब
का ही पानी बदल दो काफी है । चुनाव में खड़ा होना बाद में।
[ पाठको
को बता दे सोनिया [सिगरा के पास] एक मुहल्ले का नाम है जहाँ एक तालाब
[जो सिगरा से औरंगाबाद पानी की टंकी वाया सोनिया के रास्ते में पड़ता है
।अभी भी वैसे ही गँदला पड़ा है ।,’सोनिया’ से आप कोई अन्य अर्थ न लगा लें । मैने ’जी’ नहीं लगाया है]
-" बाद में क्यों? अभी क्यों नहीं ? बालिग हूँ ,शरीफ़ हूँ , पढ़ा
लिखा हूँ ,पागल नहीं
हूँ । लोकतन्त्र है ।लोकतन्त्र मैं ऐसे वैसे जाने कैसे कैसे लोग चुनाव में खड़े हो
जाते है। जब आठवी-नौवीं फ़ेल भी मन्त्री,उप मुख्यमन्त्री ,स्वास्थ्य मन्त्री बन सकता है तो
मैं क्यों नहीं?मेरी तो डीग्री भी सही है।जो चाहे जाँच करा
सकता है। केजरीवाल साहब भी जाँच करा सकते हैं ।नागरिकता भी सही है ।भारत का नागरिक
हूँ। ’भारत माता ’ की जय बोल सकता हूँ, वन्दे-मातरम बोल सकता
हूँ, ’जय श्री राम, बोल सकता हूँ ।इससे ज़्यादा और क्या चाहिए--देश-भक्त होने के
लिए ?
जब
तेलंगाना से लोग आ आ कर बनारस से चुनाव लड़ सकते हैं तो मैं बनारस का हो कर बनारस
से क्यों नहीं लड़ सकता ?जब
सेना का बर्खास्त सिपाही नामांकन कर सकता
है तो मैं क्यों नही भर सकता ?मैं तो बर्ख़ास्त भी नहीं हुआ
था। । जब धरती-पकड़ साहब चुनाव लड़ सकते हैं तो मैं क्यों नहीं लड़ सकता ? मैं तो वैसे भी बनारस का हूँ -धरती पुत्र--’सन आप स्वायल ’। मेरे पिताश्री
इसी बनारस से पढाई लिखाई कर परलोक को प्राप्त हुए। बाहरी होने का मुद्दा भी नहीं
उठेगा ।बस तुम जैसे कार्यकर्ता हाँ कर दे
तो मैं खड़ा हो जाऊँ । "
-’हा
हा हा हा ’- इस बार मिश्रा जी पेट पकड़ कर
बैठ गए-’ बड़े बड़े बह गए, गदहा
पूछे कितना पानी ? तुम्हें गंगा मैया ने बुलाया है क्या ? आप
किस खेत के मूली हैं जनाब ? खैर ।लोकतन्त्र है , कौन रोक सकता है आप को ?जिन्हें
जमानत जब्त कराने की हसरत हो वो दीवाने कहाँ
जाएँ ।
नशा हो "मुँह की खाने’ की तो परवाने कहाँ
जाएँ ?
पता
नहीं मिश्रा जी शायरी कर रहे हैं या हमे समझा रहे हैं।
-
गदहा किसे बोला ? मुहावरे
में ’खरहा ’ है ,गदहा नही । एक हमारी अकेले की ही जमानत
जब्त होगी क्या ?सबकी जब्त होगी। पिछली बार भी तो हुई
थी बहुतों की । जब बस्ती में सभी ’नककटे’
होंगे तो मुझे ’नककटा’ कौन कहेगा ।
-"
तो तुम्हे वोट कौन देगा ?’-
मिश्रा ने शंका प्रगट की
-अरे
वोट की क्या कमी होगी - मैने मिश्रा को वोट का गणित समझाया--" देखो ! एक तो मैं
ब्राह्मण हूँ तो समझो कि ब्राह्मणों का
वोट कहीं गया नही -सारे के सारे ब्राह्मण इस "ब्राह्मण पुत्र" का ही
समर्थन करेगे। कल मैने ’जनसंख्या वाली किताब ’ खोल कर हिसाब लगा लिया था । ऊपर से
हिन्दू हूँ तो समझो की सारे हिन्दुओं का वोट मेरी झोली में । उन्हे विकल्प चाहिए ।
परिवर्तन चाहिए।सो मैं हूँ। मैं गो-माता
की सेवा करूँगा । बचपन में करता था --गाय भी दुहता था । मगर जब गईया मईया ने दुहते
समय दो-चार लात मार दी तब से गो सेवा बन्द
कर दी है। चुनाव काल में फिर शुरु कर
दूँगा।तो ’समस्त गो-रक्षक " का वोट मेरी झोली में। मैं शाकाहारी हूँ ,तो समस्त
शाकाहारी भाई मेरी तरफ़। ’ओरिजनल ’जनेऊधारी हूँ -गायत्री मन्त्र पढ़ सकता हूँ -तो समस्त
शिखाधारी भगवादरी मेरी तरफ़। -’बेरोज़गार हूँ तो समझो कि सारे बेरोज़गारों का नेता
मैं ,तो उनके वोट मेरे ॥-मेरे पिता जी एक ग़रीब किसान परिवार
से आते थे अत: मै ग़रीबों का और किसानों दोनो का दर्द समझता हूं~ 1-2 बार हल भी पकड़ा था लड़कपन में ।अत: सारे गरीबों का वोट मेरी झोली में
--मैं इन्जीनियर भी हूं~ तो सारे बेरोज़गार इन्जीनियरों का
वोट समझो कहीं नहीं गया -बस कोई सपना दिखाने वाला चाहिए -तो मुझ से
अच्छा कौन होगा सपना दिखाने में---मैं भी बोली लगा दूँगा ग़रीबों की---मैं72000/-
की जगह 80,000/-
दूँगा---चाँद पर खेत दिला दूँगा--मैं भी 15 लाख की जगह 20 लाख खाते में डलवा दूँगा ---और कुछ सपने बताऊँ क्या ?आलू से सोना बनाने वाली बात 2024 वाले चुनाव में करूँगा । मेरा तो बस एक
ही सपना है कि एक बार चुनाव जीत जाऊं~तो ये सब मेरे खाते में
आ जाए तो --उनके खाते में डालूं ।
मिश्रा
जी ने बीच में बात काटते हुए कहा-- ’ झूठ, सफ़ेद झूठ ,तुम
बेरोज़गार कहाँ हो ? अच्छी खासी सर्विस करने के बाद रिटायर
हुए हो। बैठे बैठे पेन्शन चाँप रहे हो ऊपर
से ---
-यार
मिश्रा! तुम्हारी यही आदत बुरी है। बीच में बात काट देते हो । चुनाव काल में
झूठ-सच नहीं देखते हैं । झूठ भी सच लगता
है । पकड़े गए तो ’सुप्रीम कोर्ट’ से माफ़ी माँग लेंगे।और क्या ।अरे ! हम खाली
निठ्ल्ले बैठे हुए हैं तभी तो बेरोज़गार
हैं। रिटायर के बाद किसी ने मुझे रोज़गार दिया ही नहीं । बहुत से लोग रिटायर के बाद
’जाब’ ढूँढ लेते है, जुगाड़
लगा लेते हैं और एडवाइजर बन जाते हैं ऐश करते हैं। और यहाँ ! धेला एक नहीं मिलना
,श्रीमती जी की सेवा करो ऊपर से, झाडू-पोंछा
लगाओ अलग से । पेन्शन से ज़्यादा तो हाथ
वाले भइया मेरे खाते में डालने को बोल गए हैं और वो भी ”टैक्स-फ़्री’। वो झूट
बोलेंगे क्या?
---
--- --
मेरी
"यही बुरी आदत’ वाली बात पे मिश्रा जी को लग गई और नाराज़ हो गए । शाप देते हुए कहा --’जाओ खड़े हो जाओ ! एक वोट
भी न मिलेगा तुम्हें।
-’3-वोट
तो पक्का है । एक तुम्हारा ,एक
मेरा और एक श्रीमती जी का’ ।
काशी
से उठो,बनारस
से उठो , वाराणसी से उठो , तीनो सीट
में से कहीं से उठो। मेरा वोट तो भूल ही
जाओ ’नोटा’ दबा देना क़बूल मगर तुम्हे वोट देना---"
"मेरे
बूते मत खड़ा होना -मैं पहले ही बता दे
रहीं हूँ "- भीतर किचन से आवाज़ आई - मुझे उस दिन ब्युटी पार्लर जाना है ।
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खड़ा
होने का प्रोग्राम अभी स्थगित। अब 2024 में
देखेंगे।दुष्यन्त जी से
क्षमा-याचना सहित
सामान
कुछ नहीं है ,फटेहाल
हूँ मगर
झोले
में मेरे पास भी इक संविधान है
अस्तु
-आनन्द पाठक-
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