: वैलेन्टाईन डे - उर्फ़ प्याज-पकौड़ी चाय
जाड़े की गुनगुनी धूप। धूप सेंकता
मै और रेडियो पर बजता गाना .....
दो सितारों का ज़मीं पर है मिलन आज
की रात
मुस्कराता है उमीदो का चमन आज की
रात --
गाने के सुर में अपना सुर मिलाया
ही था---
रंग लाई है मेरे दिल की लगन आज की
रात
सारी दुनिया नज़र आती है दुल्हन आज
की रात
कि अचानक
"अच्छा ---बड़ी रिहर्सल चल रही है वैलेन्टाईन डे की। इतनी तैयारी पढ़ने में की
होती तो आज ये कलम न घिसते ।शरम नहीं आती -उमर ढल गई --रिटायर हो गए । गुलाटी
मारना नहीं गया । बन्दर का कभी गया है क्या?। उड़ती चिड़िया के पंख गिन सकती हूँ ।जब
जब वैलेन्टाईन डे आता है तो मियाँ को रोमान्स बढ़ जाता है ।,मस्ती चढ़ जाती है॥।रंगीन सपने आने लगते हैं। सब समझती हूँ ।-संस्कारी लड़की
हूँ। कोई गाय बछिया नहीं हूँ ।
मुड़ कर देखा तो श्रीमती जी थीं ।गनीमत
थी कि हाथ में बेलन नहीं था।
"बेगम ! तुम अब लड़की नहीं -अम्मा बन गई हो -- दो बच्चों की माँ -- "
"हाँ हाँ मै तो अम्मा बन गई -और तुम कौन से छोकरे रह गए । बाल रंग के बछड़ा बने
फिरते हो"।
सुधी पाठक गण अब समझ गये होंगे कि
रिटायर होने के बाद घर में मेरा गाना गाना, सुनना,गुनगुनाना भी गुनाह हो गया है।शक
की नज़र से देखा जाने लगा है ।
--उन दिनों ,जब मैं जवान था या हुआ करता था और
"वैलेन्टाईन" शब्द का आविष्कार नहीं हुआ था तो एक ’किसी अपनी’ [ जो अब भूतपूर्व हो गई है ] से
जो पूछा कि होतीं क्या उलफ़त की
रस्में
दिया रख गई वो हवा के मुकाबिल
-हम ही ’दीया’ महफ़ूज़ न रख सके उन
दिनों ज़माने की हवाओं से ।तो उसने वह ’ दीया’ कहीं और बढ़ा दिया । अब वह किसी और की
’वैलेन्टाइन’ हो गई है।
जब जब ’वैलेन्टाईन डे ’ आता है तो
मैं श्रीमती जी के ’सर्विलिएन्स कैमरे ’ की जद में आ जाता हूँ जैसे जेटली साहब की
जद में नोट-बन्दी के दिनों में काले धन वालों आ गए थे। श्रीमती जी को लगता है कि
वैलेन्टाइन डे पर मैं किसी डेड "जन धन खाता" में पैसे डालने की तैयारी
कर रहा हूँ । -हफ़्ते भर हर वक़्त कड़ी नज़र
रखती हैं मुझ पर किसी इनकम टैक्स वालों की तरह ।क्या गा रहा हूँ --.किधर ताक रहा
हूँ --किधर झाँक रहा हूँ ...क्या शायरी कर
रहा हूँ..... कैसा गीत लिख रहा हूँ..... कितनी बार बाल सँवार रहा हूँ ....कितनी
बार माँग निकाल रहा हूँ.-. मुस्करा रहा हूँ--.. कितनी बार कपड़े पर परफ़्यूम छिड़क
रहा हूँ..रुमाल केकि तने तह कर रहा हूँ --कौन सा ’परफ़्यूम लगा रहा हूँ ..कितनी बार
मूछें तराश रहा हूँ..कौन सा गुलाब.....वग़ैरह वग़ैरह।
कल किसी ’ग़ज़ल का
---फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन --फ़ाइलुन----रट रहा था कि पीछॆ से श्रीमतीजी ने कुछ उचारा—’अच्छा
!.. फ़ाइलातुन--फ़ाइलातुन ..फ़ाइलातुन करने से ’अफ़लातुन’ नहीं बन जाओगे वैलेन्टाइन डे
के दिन । दो बच्चों के बाप हो गए हो ...घर में रहों --गीता पढ़ो ..रामायण पढ़ो
..माला फेरो..राम राम जपो ...सनी लिओनी ...सनी लियोनी मत रटो .... ..वैलेन्टाइन डे
तुम्हारे लिए नहीं है ---तुम्हारे लिए
शास्त्रों में ’एकादशी
व्रत’ है....,भगवती जागरण ,है ,.... शिव-रात्रि का
प्राविधान है
मेरे एक कवि-मित्र है। हमउम्र है
।नाम बताना उचित नहीं ,। भाभी जी से उनको सुरक्षित रखना मेरी जिम्मेदारी है ।वैलेन्टाइन डे पर बड़ी
प्रेमभरी कविता लिखते है “अपनी उसे “
सुनाने के लिए ।दिल की दबी उचित कुत्सित संकुचित भावनाएँ निकाल कर लिखते है । वैसे
तो कई कवि लिखते है ,कुछ बताते हैं कुछ छुपाते हैं ,कुछ शरमाते है और कुछ दिल में ही दबा के रह जाते है जैसे मैं ।औरों का नाम
बताऊँ क्या ?कुछ कविगण जेब से ’अर्थहीन ही
रहते हैं तो अर्थहीन कविताए लिखते हैं अपनी
वैलेन्टाइन को महँगे गिफ़्ट नहीं दे पाते हैं । , इनवेस्टमेन्ट नहीं कर पाते । सो कविता से ही आसमा्न
से तारे वारे तोड़ कर ला देते है ...चाद
सितारे दे देते है --जमीन दे देते हैं.. आसमान दे देते हैं । बहुत खुश हो गए तो आरा-बलिया-छ्परा -भी हिला कर
दे देते है। .कौन सा अपने बाप का जाता है । दूसरे दिन झोला लटकाए दाढ़ी बढ़ाए सड़क पर गाते फिरते रहते है
--हम ने ज़फ़ा न की थी --उनको वफ़ा न
आई-
--पत्थर से दिल लगाया और दिल पे
चोट खाई --
। यही कारण है कि कवियों की..
शायरों की कोई परमानेन्ट वैलेन्टाइन नहीं होती ।मेरी भी नहीं है ।अगर किसी की होगी
भी तो वह बतायेगा नहीं। तो उन भाई साहब ने बड़ा ही मधुर गीत लिखा था ......... गा
कर जाँचा था -परखा था .. एक एक शब्द को
सजाया ... सँवारा . ..आवाज़ में लोच पैदा की ,कमर में लोच पैदा की --कई बार खुद सुना --मुझ को सुनाया ..... कविता में जो जो मिर्च मसाला
डालना था डाला इस उमीद से कि उनकी वैलेन्टाइन प्रभावित होगी ।
"भाई साहब ! बात हो गई उस से ?" -मैने पूछा
"किस से?"
"अरे उसीसे जिसके लिए आप ने यह गीत लिखा है । वैलेन्टाइन डे है न परसों ?
"ही ही ही’! ’-उनकी बत्तीसी निकलते निकलते रह गई "-हे हे हे ! क्या पाठक जी-- अब कहाँ मैं ....कहाँ
वैलेन्टाइन --- ये कविता तो बस वसन्त पर लिखी "वासन्ती" पर लिखी
...-प्रकॄति पर लिखी है... प्रकॄति देवी पर लिखी है ...विराट में सूक्ष्म देखता
हूं--- निराकार में साकार देखता हूँ....जड़
में चेतन देखता हूँ ..
"और मैं चोर की दाढ़ी में तिनका देखता हूँ ’-मैने कहा-", कोई बात नही प्रभुवर ! मैं भी
वैलेन्टाइन के दिनों में ऐसी ही कविता लिखता हूँ प्रकॄति पर लिखता हूँ ।ग़ज़ल लिखता
हूँ इश्क़-ए-हक़ीकी पर । मगर श्रीमती जी हैं कि मानती ही नही ,इश्क़ -ए-मजाज़ी समझती है हरदम"
पिछली बार ऐसी ही एक कविता सुनाई
थी अपनी वैलेन्टाइन को ।
इक जनम भी सनम होगा काफ़ी नहीं
इतनी बातें हैं कितनी बताऊँ
तुम्हें
यह मिलन की घड़ी उम्र बन जाए तो
गीत अपने मिलन का सुनाऊँ तुम्हें
इतना सुन लिया उसने ,बहुत था ।बहादुर लड़की थी ।
नतीज़ा यह हुआ कि कविता सुनने के
बाद आजतक जो गई सो गई ।लौटी ही नहीं --न जाने किस हाल में होगी बेचारी ? ।आज तक याद में दिवाना बने फिरता हूँ ।
धीरे धीरे दूर हो गई ऐसी भी थी
क्या मज़बूरी
पहले ऐसा कभी नहीं था हम दोनों में
दिल की दूरी
काल चक्र पर किस का वश है अविरल
गति से चलता रहता
अगर लिखा था नियति यही है प्रणय
कथा कब होती पूरी-
जाने क्यूँ ऐसा लगता है ---जाने
क्यूँ ऐसा लगता है
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पिछली बार भी वैलेन्टाइन डे मनाया
था मगर ये हिन्दू सेना ,बजरंग दल,हिन्दू परिषद वालों ने अपनी ’संस्कॄति सोटा ’ से ऐसी संस्कृति लागू
किया मुझ पर कि बस शहीद होते होते बचा। वरना यह खाकसार -वैलेन्टाइन संस्करण-2 हो जाता। 1-2 हड्डी बची तो
बाद में पुलिसवालों ने सीधा कर दिया
’वैलेन्टाइन डे’ हर साल आता है और
यह मुआ दिल हर बार हड्डियाँ तुड़वा कर सीधा खड़ा हो जाता है ।आखिर जवानी भी कोई चीज़
होती है । मैं नहीं तो क्या दिल तो जवान है । 2-4 डंडे, 2-4 बेलन तो खा ही सकता
है अभी ।
हर बार तौबा करता हूँ , हर बार रिन्द का रिन्द हो जाता हूँ और
वैलेन्टाइन डे आते आते ख़ुमार बाराबंकी साहब का शे’र गुनगुनाने लगता हूँ ।
न हारा है इश्क़ और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है
और जब पुरवा हवा चलती है तो
हड्डियों का एक एक जोड़ .पिछली वेलेन्टाइन डे की गवाही देता है।
-रिहर्सल चल रहा है। तैयारियाँ चल रही ह। लड़के ग्रीटिंग कार्ड खरीद रहे हैं॥लड़कियाँ
ड्रेस बनवा रही है। -नीतू ये देख तो कैसी रहेगी ? -- पिछली बार तो उसने घास ही नही डाली.।. खुसट था साला
---रिया ये देख ये ’इयर-रिंग’ कैसी लगेगी ?---अन्तरा इधर आ न देख न.ज़रा ..तेरा वाला तो ठरकी था ।लास्ट
इयर स्साला.. काफ़ी भी मेरे ही पैसे से पी कर सरक लिया ।.देख न ..ये..मैचिंग कैसी
लगेगी...? सब यारी तैयारी में लग गए।लड़के
गिफ़्ट ख़रीद रहे है---मोटर साइकिल में पेट्रोल भरवा रहे हैं--हवा-पानी चेक कर रहे
हैं ।-हिन्दू संस्कृति सेना वाले लाठी में तेल पिला रहे हैं-। इस ’अप-संस्कॄति’ को
इस साल फिर पानी पिलाना है ।-ऐसे खींच कर पिलाऊँगा स्सालों को कि सब
"वैलेन्टाइनपन्ती" उतर जायेगी---पुलिस वाले अपनी दूरबीन साफ़ कर रहें हैं --नज़र रखनी है-- झाड़
पे-- झाड़ियों पे --पार्कों में --खण्डहरों में --झील पे --’कजिनपन’ पनपने नहीं देना
है--सब साले कजिन कजिन कहते रहते हैं--।
इधर मैं अपनी तैयारी में लग गया ।
इस बार ऐसा गीत सुनाऊँगा, वो बहर-ए-तवील में गाऊँगा कि अपनी
वैलेन्टाइन तो क्या उसकी 2-4 सहेलियाँ भी खीची चली आयेगी .... ’एम डी एच ’ मसाले’ की तरह ....खीचा चला आए ।
गीत गुनगुना रहा था --गीत बना रहा
था ---.’अन्तरा’ के लिए।[अन्तरा तो आप समझते होंगे--कोई ग़लत अर्थ न निकालिएगा ।..अन्तरा
नहीं बन पा रहा था ....मीठी मीठे शब्द खोज खोज कर ला रहा था ।जेब का खाली कवि बस
शब्दों से ही मन बहलाता है रिझाता है
-अपनी वैलेन्टाइन को ,। और वैलेन्टाइन ऐसी कि मात्र शब्दो से नहीं बहलती । सच्ची वैलेन्टाइन तो
श्रीमती जी हैं ।-श्रीमती जी की बात और है मेरे पास ’आप्शन हो सकता है । उनके पास
कोई दूसरा ’आप्शन नहीं है ]
एक मन दो बदन की घनी छाँव में
इक क़दम तुम चलो इक क़दम मैं चलूं
आगे की लाइन सोच ही रहा था कि
’वाह ..वाह.. वाह... वाह ’- तालियां बजी-- मुड़ कर देखा श्रीमती जी खड़ी हैं
-" घुटने का दर्द ठीक हुआ नहीं... आपरेशन कराने के पैसे नहीं ......,चलने के क़ाबिल नहीं.... - और चले
हैं ’वैलेन्टाइन से कदम-ताल करने" --जाइए जाइए अपने वैलेन्टाइन के पास ....घर
की खाँड़ खुरदरी लागे ,बाहर का गुड़ मीठा ।शिवसेना --बजरंग दल वाले जब मरम्मत करेंगे तो ’रिपेयरिंग’
कराने यहीं लौट कर आओगे ।
अरी बेगम ! अब कहां जाना इस उमर
में ,पगली ।
आजीवन तू साथ रही ,मुझको रही सँभाल
’वेलेन्टिन ? धत ,और कोई ?जीणौ कित्तै साल ?
पगली अब और कितने साल जीना है ? अयं
फिर क्या था ! बालकनी में ही बैठ
कर वैलेन्टाइन डे मना रहे है श्रीमती जी के साथ --प्याज पकौड़ी चाय के साथ
"अच्छा सुन “- --प्यार जताते हुआ
सुनाया --"’अभी हमने जी भर के देखा नहीं है ।
’अच्छा’ सुना “ -श्रीमती जी ने सुनाया "-
अभी हमने जी भर के ठोंका नहीं है ।
क्या नहले पे दहला मारा ...क्या
तुकबन्दी भिड़ाई, वाह वाह .क्या क़ाफ़िया मिलाया ..क्या ’डुयेट ’ गाया। आखिर बेगम किस
की हो ।रेडियो पर गाना बज रहा है ---दो सितारो का "यहीं" पर है मिलन आज
की रात ...दो सितारों का,,,,
अब तो बालकनी ही मेरा ’पार्क’
.....घरवाली ही मेरी वैलेन्टाईन.......प्याज पकौड़ी चाय ही मेरी ’गिफ़्ट’
दुनिया जले जलती रहे.........
अस्तु
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