एक हास्य- व्यंग्य : आमन्त्रण-लिंक
मिश्रा जी ने आते ही आते अपनी उँगलियाँ दबानी शुरू कर दी।
,यह उनकी आदतों में शुमार है । वह तब तक ऐसा कुछ न कुछ करते रहेंगे
जब तक कि आप उन से पूछ न लें कि मिश्रा जी ! क्या हुआ ?
इससे पहले कि वह कुछ कहते,मैने ही पूछ लिया -’ मिश्रा जी ! क्या हुआ ?
’भई पाठक ! सुबह से सबको "आमन्त्रण-लिंक" भेजते भेजते उँगलिया दर्द करने लगी ,वही दबा रहा हूँ।
"आमन्त्रण -लिंक? कैसा? किसलिए? छोटे की शादी तय कर दी क्या ? निमन्त्रण-पत्र ही छपवा लेते’
-हा हा हा ! -मिश्रा जी अचानक हँस पड़े और सोफ़ा में धँस पड़े और मुखर हो पड़े-" शास्त्रों में लिखा है कि कुएँ के मेढक को कभी कभी कुएँ से बाहर भी निकलना चाहिए।"
-"क्या मतलब"?
"मतलब यह कि दुनिया कहाँ से कहाँ चली गई और तुम हो कि कलम-घिसाई में लगे हो।भइए ! कभी ’फ़ेसबुक’पर आओ ,कभी "व्हाट्स अप’ पर जाओ तो पता चले कि धूप कहाँ से कहाँ चढ़ चुकी है कविता-ग़ज़ल कहाँ से कहाँ पहुँच गई है ।क्या क्या ऊँचाइयाँ छू रही हैं। 25-30 मंच से जुड़ा हूँ। हर जगह से बुलावा आता है-- मिश्रा जी मेरे ’फ़ेसबुक’ पर लाइव आइए--कविता पाठ कीजिए--यहाँ आइए- इधर आइए --उधर मत जाइए - हम ’ज़ूम’ से प्रसारण कराते है -ओरिजिनल वर्जन पेड वर्जन से----मेरे यहाँ वाच पार्टी में आइए--ग़ज़ल सुनाइए
एकल काव्य पाठ कीजिए--समूह में कीजिए ---वाह वाह पाइए तालियाँ मुफ़्त में -मेरी काव्य-गोष्ठी में आइए --मालूम भी है तुम्हे कुछ?
कितनी माँग चल रही है मेरी --मेरी कविताओं की --मेरी गज़लों की ।-बेताब हैं लोग सुनने के लिए।कभी इस फ़ेसबुक पर कभी उस फ़ेसबुक पर । कभी यहाँ, कभी वहाँ ।उसी प्रोग्राम का सबको लिंक भेज रहा था सुबह से -लगा हुआ था कि उँगलियाँ थक गईं
-" तो लिंक के नीचे यह भी लिख दिया होता - मैने सुझाव दिया।
भेज रहा हूँ नेह निमन्त्रण ,प्रियवर तुम्हे बुलाने को
हे मानस के राजहंस तुम भूल न जाना आने को
-’मगर मिश्रा जी मैने आप को कभी कुछ लिखते हुए तो देखा नहीं ?
-"-तो पढ़ते हुए देख लो ।-मिश्रा जी ने एक कुटिल मुस्कान उड़ेली ।- इसीलिए तो कह रहा हूँ कि कुएँ के बाहर
भी एक दुनिया होती है । 4 बजे शाम को आलाना साइट पे मुझे सुनो--5 बजे फ़लाना मंच से सुनो--6 बजे ढकाना महफ़िल में देखो
--7-बजे विश्व हिंदी मंच से मेरा एकल काव्य पाठ सुन कर आशीर्वाद दो--8-बजे अन्तर्राष्ट्रीय मंच से-आन लाइन-9 बजे अन्तरराष्ट्रीय मंच से--आन लाइन--।-भाई साहब साँस लेने की फ़ुरसत नहीं--नन्ही सी जान है, कितने काम है !-
-मिश्रा जी ने सीना चौड़ा करते हुए यह बात कही
-" हाँ ! फ़ुरसत कहाँ मिलती होगी कुछ नया लिखने पढ़ने की ?
शायद मिश्रा जी इस वाक्य का निहित अर्थ नहीं समझ सके। और समझते भी कैसे ? अभी तो वह ’खुद को दिखाने" में व्यस्त हैं
’तुम कभी "आन लाइन लाइव’ हुए हो ?-मिश्रा जी ने पूछा”
"नहीं । मगर ऐसे निमन्त्रण/आमन्त्रण रोज़ आते हैं मेरे .’इन-बाक्स’ में ।हाँ ,एक बार एक ’लिन्क’ पर क्लिक किया था--खुला नहीं ।
फोन कर के पूछा--तो उन्होने बताया कि शाम 8-बजे खुलेगा भाई।
तब मालूम हुआ कि कुछ लोग शाम 8-बजे के बाद ही ’खुलते" हैं -- मखना चखना के साथ ।
"हाँ, गया था"-अब मैने सीना चौड़ा कर के कहा। जाने के पहले चार बार दरपन देखा, चालिस बार कंघी किया,बाल सँवारा। "अर्ध गंजे सर" से
माँग निकालना आसान होता है क्या !
गया था एक लिंक पर ।-एक घंटा तो "प्र्नाम-पाती ’ होता रहा ।-कोई सज्जन आत्म मुग्ध हो कर एकल कविता पाठ कर रहे थे।कभी बाल सँवार रहे थे।कभी हाथ जोड़ रहे थे,कभी सर झुका रहे थे ।कभी आँख मूँद रहे थे। एक लाइन सुनाते थे फिर पता नहीं झाँक झाँक कर क्या देख रहे थे? बीच बीच में कहते जा रहे थे -
-अहा दद्दा आ आ गए--सादर प्रनाम -शर्मा जी आ गए -अहा धन्य हो गया मैं ----स्वागत है--भाई वर्मा जी --किधर रह गए थे महोदय -
-। हाँ तो अगली लाइन सुने --अच्छा लगे तो अपने इस बेटे को आशीर्वाद ज़रूर दीजियेगा--हर 1-2 लाइन गाने के बाद -किसी न किसी का स्वागत ही कर रहे थे ।
-कुसुम दीदी आ गईं --स्वागत है--मीरा बहन का बहुत --अहा ’प्रिया आंटी- भी आ गई ? आंटी शब्द सुनते ही प्रिया जी बिना रुके ही चली गईं।
आई भी और गई भी । रिया भाभी --धन्यवाद --पधार कर मुझे कॄतार्थ कर दिया --हा तो-अगली लाइन सुनें-। अगली लाइन गाने के लिए जैसे ही उन्होने
अपनी आँखें बन्द की कि किसी आने वाले पर नज़र पर पड़ गई --और जैसे ही स्वागत के लिए मुँह खोला की नेट -आफ़ हो गया--।
पाँच मिनट की कविता में आधा घंटा लगा दिया ।
फ़ेसबुक वालों यू -ट्यूब वालों ने क्या इन्तज़ाम कर दिया कि अब हर आदमी गीत सुना रहा है--ग़ज़ल सुना रहा है -माहिया गा रहा है--लगता है हर लिंक पे गीतकार बहुत हैं -- ग़ज़लकार बहुत है --अदाकार बहुत हैं ।
एक और लिंक पर गया था । --देखा कोई देवी जी मुखरित थीं । बड़े लय से तरन्नुम में अपनी कोई गीत गा रही थी।बीच बीच में अपना आँचल भी सँभाल रही थी । यहाँ भी वही स्वागत --स्वागतम-- कार्यक्रम-चल रहा था --गीता दीदी का स्वागत-- नीता दीदी स्वागतम कमेन्ट बाक्स में धड़ाधड़ कमेन्ट दिए जा रहे थे--वाह वाह--बहुत मधुर आवाज-- कोकिल कंठी है---क्या आवाज़ पाई है
खुदा की देन है --वाह बहुत खूब-- क्या गीत गा रही है मोहतरमा --अभूतपूर्व --कभी सुना नही ऐसा --क्या दर्द समेटा है -अपने दिल में ,--- कलेजा मुँह को आ जावे है ।क्या सूरत पाई -वल्लाह -क्या सीरत पाई-या खुदा- क्या जल्वा नुमाई--यारब। खुदा जब हुस्न देता है---।
सैकड़ो --वाह वाह-- के बाद आधे घंटे का कार्यक्रम एक घंटे में सम्पन्न हुआ ।
लोग अपने अपने घर गए। जो घर पे सोए रह गए -उन्हें कार्यक्रम की " विडीयो रिकार्डींग ’ भेज दिया गया --इस संदेश के साथ कि जब आप सो रहे थे तो मैने गीत ग़ज़ल को कहाँ से कहाँ पहुँचा दिया ---आप भी इस विडियो को देखें ,अपने दोस्तों रिश्तेदारों को भेजे ,अपने मंच के सदस्यों को आगे पहुँचाए---पुण्य मिलेगा--लाभ होगा ।आप पर लक्ष्मी की कृपा बरसेगी।
हम पर लक्ष्मी की कृपा बरसे न बरसे मगर विडियो के हर अग्रेषण पर फ़ेसबुक वालों पर कृपा ज़रूर बरसेगी ।
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--- ख़ैर ।
कुछ दिनों बाद वह देवी जी टकरा गई और टकराते ही वाह वाह की प्र्त्याशा में उन्होने मुझसे पूछ लिया -’उस दिन मेरी कविता कैसी लगी आप को ?"
"कविता ? कौन सी ? मैं तो बस आप को ही देखता रहा । क्या साड़ी पहनी थी वाह वाह आप -वाह बहुत सुन्दर लग रही थी । क्या करीने से ’प्लेट’ लगाई थी आप ने ! बनारसी थी? मेक अप भी कमाल का ।कौन सा पार्लर था ?
हाँ आप के गले का चेन बहुत वज़नी लग रहा था 7-8 तोले से कम तो क्या रहा होगा?
-अरे महराज ! मैं कविता के बारे में पूछ रही हूँ-कविता कैसी लगी ?कविता के बारे में ?
कौन सी कविता ? क्या कहने ! वाह वाह ! आप का रंग रूप देख कर ही कविता की सुन्दरता का अन्दाज़ा लगा लिया था। मैं ’कवर’ देख पुस्तक पढ़ने का आदी हूँ
। क्या सुना ?मैं क्या बताऊँ? बस इतना ही समझ लीजै
- -गिरा अनयन ,नयन बिनु बानी--
कॄष्ण बिहारी ’नूर’-साहब से भी पूछती तो वह भी यही कहते
हो किस तरह से बयाँ तेरे हुस्न का आलम
जुबां नज़र तो नहीं है ,नज़र ज़ुबाँ तो नहीं
तारीफ़ उस ख़ुदा की जिसने तुझे बनाया--
-॑॑"हट मुए" - कह कर वह जो गईं सो गईं ।बाद में मुझे "ब्लाक" भी कर दिया।
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यारमिश्रा ! उन्होने मुझे "ब्लाक" क्यों कर दिया ? -
मिश्रा ने रहस्य बताया ,अनुभवी आदमी था -- वह अपनी कविता पर ’वाह’ वाह सुनना चाहती थी -तुम-भगवान की रचना पर वाह वाह करने लगे ।--
वह अपनी रचना के सौन्दर्य के बारे में पूछ रही थी । तुम भगवान की रचना के सौन्दर्य का वाह वाह करने लगे ।
-और -"मुए"- क्यों बोला ?-
-इसलिए कि "जा मर" और भगवान की रचना का वाह वाह भगवान के पास जा के कर।
एक बात और बता दूँ- तुम्हारी इसी हरकत के कारण सब महिला कवयित्रियॊं ने तुम्हें "ब्लाक" कर रखा है।
अस्तु
-आनन्द.पाठक-
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