शनिवार, 1 अगस्त 2009

व्यंग्य 11 : नेता जी और पंचतंत्र

एक व्यंग्य : नेता जी और पंचतंत्र ..
प्राचीन काल की बात है किसी नगरी में नेता जी नामक एक प्राणी रहा करते थे उनके कार्यकाल में ,नगर में सर्वत्र शान्ति थी नागरिक गण अपना-अपना कार्य बड़ी लगन व निष्ठा से कर रहे थे .किसी कार्य के लिए 'सोर्स-पैरवी ' लगवाना एक निकृष्ट कार्य समझा जाता था। लोग अपनी योग्यता व दक्षता के बल से आगे बढ़ते थे।परस्पर प्रेम व भाई चारा व सौहार्द्र था।नेता जी प्राय: अपने निर्वाचन क्षेत्र में ही भ्रमणरत रहा करते थे।प्रगति की बात किया करते थे समस्यायें सुनते थे। तब आज कल जैसे बहु बहु संख्यक ,अल्पसंख्यक,दलित,पीड़ित ,शोषित वोट बैंक नहीं हुआ करते थे। चुनाव जो भी होता था सादगी से होता था ।पारदर्शिता थी ।वह सतयुग था।
युग बदला ,नेता जी बदले।अब वह निर्वाचन क्षेत्र में नहीं रहते ,लखनऊ दिल्ली करते रहते हैं और स्पीकर के सामने होने वाली परेडों में परेड करते रहते हैं।जनता के सेवक हैं । जनता की सेवा करते करते कुछ बस, ट्रक, होटल ,सिनेमा हाल , मल्टीप्लेक्स ,पेट्रोल पम्प आदि के मालिक बन बैठे हैं। फ़िर अपनी इसी चल-अचल सम्पत्ति से जनता कि सेवा करते है. और यह सेवा चुनाव काल में मुफ़्त हो जाती है -मतदाताओं को बूथ तक ले जाने-ले आने के लिये।
उस काल में भी विपक्ष था । आलोचना होती थी। जम कर होती थी-नीतियों की, विचारों की।एक स्वच्छ ,स्वस्थ व शुचि परम्परा थी । विचारों में शुचिता थी। आज कल की तरह नहीं कि चरित्र-हनन ही कर देते हैं।कीचड़ उछाल देते हैं । उस समय भी जब नेता जी यौवनपूर्ण थे ,साथ में दो-चार लठैत रखते थे ,कितनी औरतों से वैध-अवैध संबंध थे पर ऐसे सम्बंध कभी आड़े नहीं आये। और अब? वृद्धावस्था में? कीचड़ उछालते हैं?....घर की नौकरानी के साथ...राम राम राम । राजनीति किस स्तर पर उतर आयी है?
नेता जी का अपना एक छोटा सा दरबार है और दरबारी भी।कुछ खानदानी ,कुछ पारवारिक। खानदानी दरबारी का बाबा भी इसी दरबार में मत्था टेकता था ,अब वह टेक रहा है।नेता जी मालिक हैं ,रोजी-रोटी का जुगाड़ हो जाता है ,खर्चा-पानी निकल आता है।पारवारिक दरबारी की नस्ल ही और होती है। उसके रीढ़ की हड्डी नहीं होती और ’विवेक’ नेता जी के पास श्रद्धा समर्पित गिरवी पड़ा रहता है। तन इनका ,मन नेता जी का।ऐसा दरबारी , परिवार के एक सदस्य की भाँति होता है जो घर के हर छोटे-बड़े को मीठा प्रेम-पूर्ण संबोधन लगा कर बोलता है ’मांजी,बाबू जी,भैया जी ,बबुआ जी’बहू जी ,बड़ी दीदी । और परिवार का हर सदस्य उसे पुकारता है "भोलवा" ! अरे ! कहाँ मर गया स्साला ? भोला सिंह एक ऐसा ही दरबारी था।
एक दिन ,नेता जी दरबार कक्ष में बैठ देश-विदेश (अपने नगर की नहीं)की गिरती स्थिति पर विचार-विमर्श कर रहे थे .देश किधर जा रहा है?क्या होगा मेरे सिंचित निर्वाचन क्षेत्र का?कौन संभालेगा मेरी यह चल-अचल सम्पत्ति? कौन होगा मेरा उत्तराधिकारी?कैसे पार लगेगी देश की डूबती हुई नैया?कैसे सम्भलेगा मेरा यह देश? लगा द्द्दा के कर्ण समीप प्रदेश के कुछ बाल और सफेद हो गये। चेहरे पर झुर्रियाँ और बढ़ गईं।
’दद्दा !छोटके बबुआ जी को अब राजनीति में आ जाना चाहिये देश के स्थिति संभालने औ सुधारने के लिए।देश पुकार रहा है।बबुआ जी क युवा वर्ग में विशेषत: निठ्ठ्ल्लुओं में बड़ा मान-सम्मान है।परमाणु निरस्त्रीकरण पर अमेरिकी दबाव का मुकाबला आराम सेकर लेंगे बबुआ जी।"-भोला सिंह ने अपनी स्वामी-भक्ति प्रगट की।
नेता जी चिन्ताग्रस्त हैं । माथे पर रेखाएं और गहरा गईं। बबुआ अभी छोटा है ,बच्चा है ।राजनीति का दाँव-पेंच नहीं समझता।कितना विशाल है यह देश !कैसे संभालेगा वह पतवार ? और साहबजादे हैं कि दिन भर आवारागर्दी से फ़ुर्सत ही नहीं मिलती उन्हें। सुबह ही सुबह हीरो होण्डा लेकर न जाने कहाँ फ़ुर्र हो जाते हैं। नालायक ,कमीना। नेता जी ने अपने सुपुत्र के लिए एक मनोगत गाली उचारी ? मगर प्रत्यक्ष...
" अरे नहीं भोलवा !बबुआ की उमर ही क्या है !कच्चा है ,राजनीति की पकड़ नहीं।’-नेता जी ने आशंका प्रगट की
" उ हमरा पर छोड़ दीजिये मालिक !हम सब व्यवस्था कर देंगे।आप के सेवा में सगरी उमर कट गई ,तनिक बबुआ जी की सेवा में कट जाए तो जिनगी सुआरथ हो जाए ,मालिक’-भोला सिंह करबद्ध हो दद्दा के श्री चरणों में झुक गया। रीढ़ विहीन प्राणियों को यही तो सुविधा है । झुकने में कष्ट नहीं होता ।
भोलासिंह ने युक्ति जताई। तय हुआ उचौरी ग्राम के प्राइमरी स्कूल के अध्यापक पण्डित विष्णु शर्मा जी की सेवाएं ली जाय।वह छोटके बबुआ जी को दाँव-पेंच ,जोड़-तोड़ में प्रवीण करें।शर्मा जी ज़िलास्तर के ख्याति प्राप्ति शिक्षक हैं।कई मूर्ख बालकों को शिक्षक और नेता बना चुके हैं ।और जो वंचित रह गये वो आज कल व्यंग्य लिख रहे है। पूर्व काल में भी इनकी सेवाएं ली गई थीं जब दक्षिण प्रदेश के महिलारोप्य नामक नगर के राजा अमर शक्तिसिंह्के तीन मूर्ख बालकों को पंचतन्त्र की रचना कर ,शासन संचालन के योग्य बना चुके थे ।इस क्षेत्र में शर्मा जी की दक्षता राजनीतिक ,उठापटक ,दांव-पेंच, गुणा-भाग,निश्चय ही संदेह से परे था ।कितनी सरकारें आईं,गईं,कितने शिक्षाधिकारी आए ,गए,मगर शर्मा जी उसी स्कूल में उसी पद पर विगत बीस वर्षों से पद्स्थापित हैं।दिवाकाल खेत में पानी पटाते हैं ,रात्रि काल में राजनीति लड़ाते हैं।छुट्टियों में शिक्षाधिकारियों के यहाँ मौसमी सब्जियाँ ,फल-फूल पहुँचाते हैं।छोटके बबुआ को प्रशिक्षित करने का कार्य यदि इन्हे सौंप दिया जाय तो देश का भविष्य सुरक्षित रहेगा।तय हुआ। विष्णु शर्मा जी बुलाए गये।दरबार लगा है।दरबारी बैठे हैं।नव-दरबारी निरर्थक बाहर भीतर आ जा रहे हैं अपना प्रभाव जताने के लिए।विचार-विमर्श चल रहा है,समस्याओं पर तर्क-वितर्क ,चिन्तन-मनन प्रगति पर है कि शर्मा जी ने हाथ जोड़ कर प्रवेश किया।
" रे शर्मा !’- नेता जी ने अपनी शैली में स्वागत किया और कहा-" तुम्हें याद है जब तेरा तबादला पास वाले स्कूल पर हो गया था तो मैने ही रूकवाया था।’
"जी हुजूर ,कैसे भूल सकता हूँ ,कॄतघ्नता होगी। कितनी मेहनत की थी सरकार ने लख्ननऊ -दिल्ली एक कर दिया था सरकार ने। मेरे लिए कोई आदेश हो तो मालिक कहें।"- शर्मा जी सर झुका तैयार हो गये आदेश ग्रहण करने के लिए।
’चलो अच्छा हुआ। याद तो है.हम समझे कि भूल ही गया होगा।"-नेता जी एक हँसी हँसी ,दरबारियों ने अपनी हँसी मिलाई,अन्त में शर्माजी ने अपनी ही ! ही !हो!हो! मिला कर श्रीवृद्धि की।
" तो सुन ! छोटके बबुआ है न ,जरा इनका....."-दद्दा ने कहा-"...बाकी भोलवा समझा देगा"
अपने प्रति इस अयाचित सम्मान हेतु ,भोलासिंह जरा उचक कर तन गए और शर्मा जी को तुरन्त लेकर बाहर निकल आए शेष कार्य समझाने हेतु।
छोटके बबुआ ,शर्मा जी के संरक्षण में चले गये । राजनीति में प्रवीण करना है ।शर्मा जी ने एक बार फ़िर पंचतन्त्र के अपने पुराने पात्रों को स्मरण किया, कहानी रचनी थी,बबुआ को सुशिक्षित करना था।समस्त पुराने पशु पात्र ’करटक’ ’दमनक’ ने हाथ जोड़ कर अति विनम्र प्रार्थना की।
" पण्डित जी !इस बार हमें अपनी कहानियों के पात्र न बनाएं।प्राचीन काल के बात और थी।तब आदमी, जानवरों की बात सुनता था ,समझता था ।अब? अब तो आदमी आदमी की ही बात नहीं सुनता है,जानवरों की भाषा में बात करता है।अत: लोकतन्त्र की कहानियों का हमें पात्र बना ,हमारा अपमान न करें महाराज !"
पण्डित जी ने विचार-मन्थन किया । बात में कुछ-कुछ औचित्य है । अत: शर्मा जी ने पंचतन्त्रीय कहानियाँ त्याग ,लोकतन्त्रीय कहानियों की रचना की। पशु-पात्रो को छोड़ ’पशुवत" पात्रों को लिया।गम्य व सुबोधजन्य। सरपंच जी,मुखिया जी,प्रधान जी,थानेदार,तहसीलदार ,नेता .मन्त्री, दरबारी ,पटवारी,व्यापारी,नामी गिरामी स्वामी एक-एक पात्र की कहानी रची।
कैसे पटवारी ने ’हरेन्द्र’ की जमीन ’महेन्द्र’ को नाप दी,कैसे ’मनतोरनी’ हत्याकाण्ड में प्रधान जी बरी हो गये।गत माह की डकैती में मुखिया जी ने कैसे थानेदार साहब को पटा लिया और ’हरहुआ" को फंसवा दिया । कैसे ’पानी परात को हाथ छुऒ नहीं" और मन्त्री जी लाखों डकार गये।’रिन्द के रिन्द रहे सुबह को तौबा कर ली’। कैसे बाबू साहब ने बूथ- कैप्चरिंग करवाई और ’छमिया" बलात्कार केस फाईलों में पड़े-पड़े दम तोड़ गई। घोटालों का सूट्केस से क्या संबंध है। हवाला का पाउडर कितने काम का ,चुनाव काल में उडा़ते रहो ,जनता की आँख में झोकते रहो...और जनता सोचती है...कुछ हुआ तो ज़रूर है मगर दिखाई नहीं देता.....वगैरह..वगैरह
शर्मा जी बड़ी लगन व मनोयोग से शिक्षा दे रहे हैं ।एक-एक बारीकियाँ समझा रहे हैं,एक-एक का सम्यक पाणनीय विश्लेषण बता रहे हैं बिल्कुल आचार्य व गुरुकुल परम्परा की तरह। समझा रहे हैं अफसरों ने कैसे हनुमान चालीसा पढ़ सूक्ष्म रूप धारण कर लिया और सी०बी०आई० के सुरसा मुख से अक्षत बाहर निकल आए।कैसे सी०बी०आई० जाल फेक रही है कि बड़ी मछलियाँ तो जमानत पर रिहा हैं और छोटी मछलियाँ फँस रही हैं।
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शिक्षा पूर्णोपरान्त शर्मा जी छोटके बबुआ को साथ लेकर दरबार में उपस्थित हुए बिल्कुल द्रोणाचार्य की तरह।
"मालिक आप के आदेशानुसार मैने अपना कर्तव्य निभा दिया।बबुआ जी की शिक्षा-दीक्षा पूर्ण हुई।आशा है आप की आकांक्षाओं एवं आशाओं के अनुरूप उतरेंगे..देश की बिगड़ती हुई स्थिति को संभाल लेंगे...देश को डूबने से बचा लेंगे.."
गुरु-दक्षिणा स्वरूप ,आगामी और दो वर्ष उसी गाँव ,उसी स्कूल,उसी पद पर रहने का एक अदद आश्वासन पा प्रसन्न मन बाहर आ गये।
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छ्ह महीने बाद
नगर में डकैती ,लूट ,बलात्कार,अपहरण की घटनाएं बढ़ गईं। दंगे-फ़साद होने लगे।दिनोदिन घोटाले,हवाला,चोर-बाजारी की घटनाएं बढ़ने लगी ।यत्र-तत्र जनता त्राहिमाम त्राहिमाम करने लगी
दद्दा आश्वस्त हैं । बबुआ प्रवीण हो गया।उनकी चल-अचल संपत्ति संभाल लेगा। देश सुरक्षित रहेगा।
।अस्तु।
-आनन्द

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