सोमवार, 25 मई 2009

व्यंग 03: लघु व्यथा -प्यासा कौआ....

प्यास से व्याकुल कौए ने घडा देखा .घडे में पानी था तो ज़रूर परन्तु पेंदे में , मुंह से बहुत नीचे था .प्यास बुझाने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था .प्यास से हाल-बेहाल था .अचानक उसके मन में एक विचार कौंधा .फिर क्या था ! पास पड़े कंकडों को एक-एक कर के घडे में डालना शुरू किया.उसका यह सत्प्रयास रंग लाने लगा और घडे का जलस्तरधीरे-धीरे ऊपर आने लगा.उसका यह परिश्रम सफल होने जा रहा था.वह सोच रहा था की अब वह अपनी प्यास बुझा लेगा ....वह अपनी प्यास...
दूर कहीं केहुनी पर टिका,गांधी टोपी लगाए एक आदमी यह घटनाक्रम बड़े ध्यान व मनोयोग से देख रहा था और कौए के श्रम पर मंद-मंद मुस्करा रहा था.कौए ने जैसे ही जल पीने के लिए अपनी चोंच दुबाई की उस आदमी ने एक पत्थर उठा कर चला दिया और कौए को भगा दिया .कौआ उड़ गया .तत्पश्चात वह
व्यक्ति बड़े आराम से पानी पीने लगा.लोग कहते हैं कि वह अपने क्षेत्र का बाहुबली था.
उस व्यक्ति की यह विलक्षण प्रतिभा व अद्भुत कार्यशैली देख कर आलाकमान महोदय अति प्रसन्न व प्रभावित हुए. उन्होंने उस व्यक्ति में अपने राजनैतिक उतराधिकारी के गुण देखते हुए आगामी चुनाव का टिकट दे दिया .कहने की आवश्यकता नहीं कि वह भारे मतों से विजयी भी हो गया .
और कौआ?
वह कौआ आज भी डाल पर बैठ कर कवी जी कि कविता गुनगुना रहा है :-
" एक आदमी /रोटी बेलता है
दूसरा सेंकता है /तीसरा रोटी से खेलता है
तीसरा वह कौन है ?
इस विषय पर आज संसद मौन है "

इति श्री काक व्रत कथायाम द्वितीयोध्याय
अस्तु.

---आनंद

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपके इस काक व्रत कथा के तृ्तीयोध्याय की भी प्रतीक्षा रहेगी..

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  2. निराश न हों भाई, ऐसे लोगों को चुनावों में इस बार मज़ा नहीं आया.

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